गरियाबंदछत्तीसगढ़

झोलाछाप डॉक्टर बना मौत का सौदागर: अवैध क्लिनिक की लापरवाही से जच्चा-बच्चा की हुई दर्दनाक मौत

गरियाबंद/देवभोग:– छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। देवभोग क्षेत्र के डूमाघाट गांव में एक अवैध क्लिनिक की लापरवाही ने गर्भवती आदिवासी महिला और उसके नवजात की जान ले ली। यह नृशंस घटना इस बात का सबूत है कि किस तरह सिस्टम की नाकामी गरीबों की ज़िंदगी निगल रही है, और प्रशासन कुंभकर्णी नींद में सो रहा है।

चार घंटे तक मौत से जूझती रही मां, झोलाछाप डॉक्टर ने बना दिया मौत का खेल : योगेंद्री बाई, जो अपने अजन्मे बच्चे को इस दुनिया में लाने का सपना देख रही थी, उसे चार घंटे तक झोलाछाप डॉक्टर के हवाले छोड़ दिया गया। ना आधुनिक चिकित्सा उपकरण, ना कोई प्रशिक्षित स्टाफ-बस एक बेरहम, लालची हत्यारा, जिसने पैसे कमाने के लिए दो जानें ले लीं।

पति पदमन नेताम ने किसी अच्छे अस्पताल की उम्मीद में अपनी पत्नी को टिकरापारा स्थित इस तथाकथित क्लिनिक में भर्ती कराया, लेकिन वहां चार घंटे तक सिर्फ लापरवाही का नंगा नाच चला। जब झोलाछाप डॉक्टर की मूर्खता के कारण महिला की हालत नाजुक हो गई, तो आनन-फानन में उसे ओडिशा के धरमगढ़ अस्पताल रेफर कर दिया गया। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने मां और बच्चे को मृत घोषित कर दिया।

प्रशासन ने आंखें मूंद रखी थीं- पहले भी बंद हुआ था यह अवैध क्लिनिक : इस घटना ने प्रशासन की मिलीभगत और भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया है। जिस अवैध क्लिनिक में यह अपराध हुआ, उसे पहले भी स्वास्थ्य विभाग ने सील किया था। फिर किसके आशीर्वाद से यह दोबारा संचालित हो रहा था? कौन इस हत्यारे डॉक्टर को बचा रहा था?

स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र में ऐसे अवैध क्लिनिकों की भरमार है, लेकिन प्रशासन ने जान-बूझकर इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। आखिर गरीब आदिवासी जनता की जान इतनी सस्ती क्यों? क्या प्रशासन तब तक इंतजार करेगा जब तक कोई रसूखदार व्यक्ति इसकी चपेट में न आ जाए?

आदिवासी समाज का गुस्सा फूटा, सड़कों पर आंदोलन की चेतावनी : इस वीभत्स घटना के बाद पूरे इलाके में आक्रोश की लहर दौड़ गई है। आदिवासी समाज के नेता लोकेश्वरी नेताम और संजय नेताम के नेतृत्व में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए और गरियाबंद कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया। उन्होंने साफ-साफ शब्दों में चेतावनी दी- “अगर दोषियों पर गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज नहीं हुआ, अवैध क्लिनिक को हमेशा के लिए बंद नहीं किया गया और पीड़ित परिवार को 50 लाख मुआवजा एवं सरकारी नौकरी नहीं दी गई, तो हम उग्र आंदोलन करेंगे। यह अन्याय अब बर्दाश्त नहीं होगा!”

प्रशासन ने दबाने की कोशिश की, लेकिन जनता ने दिखाया असली दम : सूत्रों की मानें तो प्रशासन इस मामले को दबाने की फिराक में था, लेकिन जब आदिवासी समाज ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया, तब जाकर स्वास्थ्य विभाग हरकत में आया। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) ने जांच के लिए छह सदस्यीय टीम का गठन किया है, लेकिन क्या यह सिर्फ एक औपचारिकता होगी या दोषियों पर वाकई गाज गिरेगी?

सरकारी अस्पताल बने कब्रगाह, मजबूरी में झोलाछाप डॉक्टरों के पास जा रहे लोग : यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के सड़ने की निशानी है। सरकारी अस्पतालों में इलाज और सुविधाओं के अभाव के कारण गरीब जनता झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाने को मजबूर है। यह प्रशासन और सरकार के लिए एक कड़ा तमाचा है कि जिनका कर्तव्य जनता को सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएं देना था, वे आज अपनी जेबें भरने में व्यस्त हैं, और गरीबों की जान सस्ती समझी जा रही है।

क्या दोषियों को मिलेगी सजा या फिर कांड होगा फिर से फाइलों में दफन? : अब सवाल यह है कि क्या इस झोलाछाप हत्यारे को कानून के शिकंजे में लाया जाएगा? क्या जिन अफसरों की लापरवाही से यह क्लिनिक दोबारा खुला, उन पर कार्रवाई होगी? या फिर यह मामला भी बाकी घोटालों और मौतों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?

आदिवासी समाज का ऐलान: न्याय नहीं मिला, तो होगा उग्र आंदोलन : अब यह मामला केवल एक परिवार की मौत का नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की अस्मिता और अधिकारों का बन चुका है। अगर प्रशासन जल्द से जल्द ठोस कार्रवाई नहीं करता, तो गरियाबंद और देवभोग की सड़कों पर जनता का गुस्सा फूटेगा, और इस बार आंदोलन झटके में नहीं रुकेगा।

सवाल जो प्रशासन से पूछे जाने चाहिए :

1. जब यह क्लिनिक पहले भी सील किया गया था, तो दोबारा खुलने की इजाजत किसने दी?

2. आखिर कितनी मौतों के बाद प्रशासन अवैध क्लिनिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा?

3. गरीबों के लिए सरकारी अस्पतालों की हालत कब सुधरेगी?

4. क्या दोषी झोलाछाप डॉक्टर और इस क्लिनिक को संरक्षण देने वाले अफसरों पर कार्रवाई होगी?

अब माफी नहीं, सिर्फ कार्रवाई चाहिए : यह घटना एक चेतावनी है कि अगर प्रशासन ने जल्द से जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो जनता खुद न्याय करने पर उतारू हो जाएगी। गरियाबंद के लोग अब सिर्फ बयानबाजी नहीं, बल्कि ठोस नतीजे चाहते हैं। यह मौतें सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सिस्टम का खूनी चेहरा उजागर करने वाला काला अध्याय हैं। अब माफी नहीं, सिर्फ कार्रवाई चाहिए!

Adobe Scan 23-Mar-2025_250325_210434 अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद, गरियाबंद

Fareed Khan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!