छत्तीसगढ़

“डॉ. भीमराव अंबेडकर : एक नाम नहीं, क्रांति की ज्वाला”

जन्मे महू की छाया में,

जहाँ जाति ने रचा था जाल,

छोटे भीम ने ठान लिया,

“न सहूंगा अन्याय का काल।”

पीछे बैठना, जल से वंचित,

हर दिन अपमान का विष पीना,

किन्तु उसकी आँखों में जलती थी 

एक स्वप्निल क्रांति की दीवा।

अमेरिका, लंदन से लौटे,

ज्ञान का अमृत लेकर आए,

प्रश्न उठाया – “क्या जन्म से निर्धारित होता मानव का मूल्य, उसका साया?”

मनुस्मृति की अग्नि जली थी,

जिस दिन विद्रोह बोला था,

“धर्म वह नहीं जो अपमान सिखाए, सत्य वही जो मानव को मानव बनाए।”

संविधान की नींव रखी,

न्याय, समता, बंधुता रच दी,

कानून बना, लेकिन समाज अब भी मनु की परछाई में सिमटा है कहीं।

राजनीति ने नाम अपनाया,

पर विचारों को भुला दिया,

अंबेडकर ने अधिकार मांगे, व्यवस्था ने उन्हें दया बना दिया।

नागपुर की पावन धरती पर,

बुद्ध की शरण में किया प्रवेश,

कहा – “अब मैं मानव हूँ पूर्णतः, अब नहीं चाहिए बंधनों का शेष।”

आज भीम की प्रतिमा लगती है,

हर कार्यालय, हर मंच पर,

पर उनकी वाणी मौन है आज,

जब जाति जहर घोल रही घर-घर।

यह लेख नहीं, उद्घोष है,

एक चेतना, एक जागृति का प्रकाश,

जहाँ अंधकार होगा अन्याय का, वहाँ गूंजेगा अंबेडकर का प्रकाश।

शिक्षित बनो – ताकि तुम जानो।

आंदोलन करो – ताकि सत्ता डरे।

संगठित रहो – ताकि बदलाव स्थायी हो।

“जय भीम!” –

यह केवल उद्घोष नहीं,

यह आत्म-सम्मान, समता और स्वतंत्रता की

अनवरत चलती क्रांति है।

Fareed Khan

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