
क्या कर्मचारी को है बड़े नेताओं का संरक्षण, 26 जून से पड़ा है ट्रांसफर आदेश, क्या अधिकारी हुए पस्त या सहमत…?
सूरजपुर :– स्वास्थ्य विभाग के आदेश को ताक पर रखकर एक कर्मचारी कैसे पूरे सिस्टम को ठेंगा दिखा सकता है, इसकी मिसाल बना है सूरजपुर जिला अस्पताल जहां 26 जून को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, मंत्रालय रायपुर ने सख्त आदेश जारी कर सिविल सह सर्जन संजय सिंहा को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पटना जिला कोरिया जो इनके घर के समीप ट्रांसफर किया था, लेकिन हैरत की बात ये है कि 12 दिन गुजर जाने के बाद भी श्रीमान अब तक सूरजपुर में ही जमे हुए हैं। ऐसे में कई सवाल खड़े हो रहे है क्या सिविल सह सर्जन संजय सिंहा ने सरकारी आदेश को ठुकरा दिया है?
कुर्सी से चिपका अफसर या आदेश को अवहेलना करने वाला सिस्टम?
ट्रांसफर होने के बाद भी कर्मचारी की पोस्टिंग पर बोर्ड लटका है, उनके नाम की पट्टिका आज भी चमक रही है। ट्रांसफर के 12 दिन बाद भी न कोई रिलीविंग ऑर्डर निकला, न कोई चार्ज हैंडओवर की कार्रवाई हुई। जबकि इस पद के लिए और भी कर्मचारी मौजूद हैं, पदभार देने या अधिकारी द्वारा दिलाने में 12 दिन लग गए लेकिन नहीं हो पाया, बाबू साहब रोज अस्पताल पहुंच रहे हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो।
जनता कर रही सवाल
आदेश का मतलब क्या सिर्फ़ कागजों तक है? स्थानीय लोगों में इसको लेकर भारी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि अगर आम आदमी ट्रांसफर ऑर्डर का पालन न करे तो उस पर विभागीय कार्रवाई तय है। लेकिन पहुंच वाले साहब के लिए शायद नियम कानून सिर्फ़ “कागज़ की बात” रह गए हैं।
कहीं कोई राजनीतिक या प्रशासनिक मिलीभगत तो नहीं?
सूत्रों की मानें तो इनकी सूरजपुर में मजबूत पकड़ है। कुछ स्थानीय नेताओं और अधिकारियों से उनकी गहरी नजदीकियां भी चर्चा में हैं। अब सवाल उठ रहा है कि आख़िर उन्हें किसकी शह मिल रही है, जो मंत्रालय के ट्रांसफर ऑर्डर के बावजूद वो बेफिक्री से कुर्सी पर बैठे हैं? लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मंत्रालय रायपुर” ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि 26 जून से कोरिया में पदभार ग्रहण करना है। लेकिन न तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुछ बोल रहे हैं और न ही कोई कार्रवाई दिख रही है, इससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
सवाल बहुत हैं, जवाब कोई नहीं…
क्या सूरजपुर प्रशासन जान-बूझकर मामले को दबा रहा है?
क्या संजय सिंहा को कोई राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है?
क्या अब सरकार के आदेशों का कोई मतलब ही नहीं रह गया?
अगर यही हाल रहा, तो आने वाले दिनों में कोई भी अधिकारी–कर्मचारी ट्रांसफर ऑर्डर को “रद्दी” समझकर फाड़ देगा।